किसी कहानी के पात्र बदले जा सकते हैं,
बदल जाते हैं !,
दिशा बदल सकती है,
पर जो कहानी जहाँ से शुरू होती है,
वहीं रहती है ।
कथा की समाप्ति की घोषणा के बाद भी,
कुछ छिटपुट एहसास
नहीं लिखे गए पन्नों पर
लेते रहते हैं शक्ल !
उसे कितना भी अर्थहीन कह लें,
अर्थहीन होता नहीं है !
- उसका कोई न कोई प्रयोजन होता है
दीवार बनने या ढह जाने में
आत्मावलोकन में अन्यथा आत्मग्लानि में !!!
कहानी इतिहास नहीं होती है। समय के साथ जीती है। सटीक।
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएं