कृष्ण,
मुझे क्षमा करना यदि तुम्हें अति लगा हो,
या फिर मेरे सर पर अपना हाथ रख देना,
यदि तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान आई हो
यह सुनकर -
कि,
तुमने कुरुक्षेत्र में जिस तरह अर्जुन का रथ दौड़ाया,
उससे कहीं अधिक कुशलता से
मैं अपने मन का रथ दौड़ाती हूँ ।
केशव,
यह मेरा अभिमान नहीं,
यह तुम ही हो,
जिसने अर्जुन से कहीं अधिक,
अपना विराट स्वरूप दिखाकर
मेरे भव्य स्वरूप को उभारा ।
गीता का सार अपने मुख से सुनाया,
और उतना ही सुनाया,
जितना मेरे लिए ज़रूरी था ।
उंगली थामकर
एक नहीं,
कई बार मुझे ब्रह्मांड दिखाया ...
मुझ लघु को
मेरे अस्तित्व की पहचान दी
और बिना कोई प्रश्न उठाये
मुझमें अपनी पहचान दे दी ।
कृष्ण हाथ रखेंगे सर पर
जवाब देंहटाएंऔर मुस्कुरायेंगे भी ।
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
28/04/2019 को......
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आप भी इस हलचल में......
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धन्यवाद
बहुत अच्छी बात है दीदी! दिल खुश हो गया!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअति उत्तम ,बहुत ही सुंदर नमन
जवाब देंहटाएंविश्वास और दृढ़ आस्था का सुंदर संगम है रचना बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना आदरणीय रश्मि जी | आपका लेखन विस्मय भरा है | सादर --
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब....