03 जुलाई, 2019

सर से पाँव तक - सिर्फ बारिश




काश मैं ही होती मेघ समूह,
गरजती, कड़कती बिजली ।
छमछम,झमाझम बरसती,
टीन की छतों पर,
फूस की झोपड़ी पर,
मिट्टी गोबर से लिपे गए आंगन में ।
झटास बन,
छतरी के अंदर भिगोती सबको,
नदी,नाले,झील,समंदर
सबसे इश्क़ लड़ाती,
गर्मी से राहत पाई आँखों में थिरकती,
फूलों,पौधों,वृक्षों की प्यास बुझाती,
किसी सूखी टहनी में,
फिर से ज़िन्दगी भर देती ।
बच्चों की झुंड में,
कागज़ की नाव के संग,
आंखमिचौली खेलती,
छपाक छपाक संगीत बन जाती,
गरम समोसे,
गर्मागर्म पकौड़े खाने का सबब बनती,
किसी हीर की खिलखिलाती हँसी बनती,
बादल बन जब धीरे से उतरती,
मस्तमौलों का हुजूम,
चटकते-मटकते भुट्टों के संग,
शोर मचाता ।
कुछ चिंगारियाँ मेरी धुंध लिबास पर
छनाक से पड़ती,
सप्तसुरों में,
कोई मेघराग गाता ...
किसी अस्सी,नब्बे साल की अम्मा के
पोपले चेहरे पर ठुनकती,
वह जब अपने चेहरे से मुझे निचोड़ती,
तब मैं बताती,
इमारत कभी बुलन्द थी ।
बाबा के बंद हुक्के का धुआं,
राग मल्हार गाता,
किसी बिरहन की सोई पाजेब,
छनक उठती
काश, मैं बादलों का समूह होती,
झिर झिर झिर झिर बारिश होती
सर से पाँव तक - सिर्फ बारिश ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बारिश में जो मन करे , मस्ती होगी और हमें ऐसी ही मस्ती पसंद है ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-07-2019) को ", काहे का अभिसार" (चर्चा अंक- 3387) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत बहुत सुंदर मनभावन सरस रचना ।

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  4. वाह ! आपके शब्दों की बारिश में हम भीग ही नहीं गये वे सारे अनुभव भी कर लिए जो बारिश के साथ जुड़े हैं तथा जिनका जिक्र बेहद खूबसूरती से आपने किया है..मनमोहक रचना..बधाई !

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  5. वाह...
    बूँद बूँद जैसै झर झर बहती कविता!

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