29 अप्रैल, 2008

एक सपना...


मन,हो सके तो चलो,
एक सपना ले आयें गाँव से-
मिट्टी का चूल्हा,मिट्टी का आँगन,
धान की बालियाँ,पेड़ की छाँव,
कुंए का पानी,चिड़ियों का झुंड,
पूर्वा के झोंके,
टूटी-सी खाट,
मोटी-मोटी रोटियाँ,
फागुन के गीत,
पायल की रुनझुन,
चूड़ियों की खनक,
ढोलक की थाप
और तेरा साथ...................

13 टिप्‍पणियां:

  1. bahat alag saa pyara sa romance hai kavita men bahut achha sajeev

    Anil

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  2. भाव अच्छे हैं...मगर मेरे शहर का यथार्थ उतना ही हटके है...जितनी उन्चीं इमारते देखने में आया करतीं हैं...
    बीसियों मंजिल के दरवाजे से निकलकर...
    मैं अपनी उसी झोंपड़ी में घुस जाया करता हूँ
    जहाँ के बर्तनों में चूहे अपनी भूख तलाश रहे होते हैं
    जहाँ के टूटे फर्नीचर में खटमल घूम रहे होते हैं...
    जहाँ घुसते ही मैं
    सबसे पहले/ अक्सर ही टकरा जाता हूँ /
    अपने ही दरवाजे में...
    बड़े दरवाजों से निकलकर/
    जैसे ध्यान ही नहीं रहता...(काफी है...)
    ---
    इक़ मीत तुम्हारे इन अहसासों सा मिलना कितना मुश्किल है, इस बात से तुम बखूबी वाबस्ता होगी...फिर जब तुम इन्हें कोई शक्ल देती हो...तो अच्छा ही करती हो...अहसासों की उम्र भी बदन के ढलाव के साथ ढल ही तो जाती है...सबकुछ महफूज़ कहाँ रहता है...हाँ मगर! प्रकृति! काश! कि हम इस में खुद कोई घोल पायें...सबकुछ रह सकता है...वैसा ही...जैसे मौसम...
    ---
    सादर;
    फ़कत इक़ मौज़ का प्यासा "सागर"

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  3. फागुन के गीत,
    पायल की रुनझुन,
    चूड़ियों की खनक,
    ढोलक की थाप
    और तेरा साथ............

    बहुत खूब रश्मि जी

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  4. bahut hi khubsurat sapna ha ji,ek dam gili mitti ki saundhi si khusbu ki tarah,kash shaher mein gaon bas sakta.

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  5. मिट्टी का चूल्हा,मिट्टी का आँगन,
    धान की बालियाँ,पेड़ की छाँव,
    कुंए का पानी,चिड़ियों का झुंड,

    ine teen lines mein he mein bhi ghum ayi apne gaon..bahut badiya likha hai....

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  6. बहुत सुन्दर कविता.....
    रश्मि जी...आपको ऑरकुट पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी है. स्वीकार करिये!इसके बिना आपकी स्क्रेप बुक मेरे लिए नहीं खुल सकेगी!मेरा लिंक है.. www.kuchehsaas.blogspot.com

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  7. mera to kab se yahi man karta hai..........main chalunga gaanv
    shukriya bahut badhiya likha hai

    avinash

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  8. बहुत खूबसूरत सपना है | वाकई आज की भागती दौड़ती शहरी जिन्दिगी जीने वाले ये सब कुछ एक खुशनुमा सपने के समान ही हो गया है |

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  9. Bahut khoob Rashmi Ji ........ aapke jajbaat hum dil se sarahte hai
    Aisa mahol, aisi khushbu .....paane ko kitna tarsaate hai?

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  10. बहुत ही मोहक चित्र खीचा है गाँव का ,रश्मि जी..
    ***********************************
    पर आज का गाँव ऐसे नहीं रहे ....
    जातिवाद, बाहुबल ,ओछी राजनीति और आधुनिक बनने का अधकचरा प्रयास ---ये पहचान बन कर रह गयी है..
    ये मेरा खुद का अनुभव है फिल्मी संवाद नहीं..
    मैंने अपने बचपन के १० साल गाँव में गुजारे हैं.. और आज भी उस से जुडा हूँ...

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  11. बुन लाये
    खेत कि घास "
    माटी कि गँध "
    मुँडेर का सुरज "
    रँभाती गाय
    और बच्चे कि मुस्कान "

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