बारिश की बूंदों से हो रही है बातें
कहा है उसने आगे ही एक नदी है
जहां मैं खुद को एक पहचान दे रही हूँ,
मिट्टी, किनारे,नाव, मल्लाह, मछली... चांदनी से रिश्ता बना रही हूँ ।
सुनकर चल पड़ी हूँ उस ओर
जहां नदी बारिश की बूंदो संग
मेरा इंतजार कर रही है ...
सोचा है बैठूंगी नाव में,
इस किनारे से उस किनारे तक चलते हुए,
मल्लाह, नदी, धरती,आकाश की
कुछ सुनूंगी,
कुछ सुनाऊंगी
सुबह-सुबह पेड़, चिड़िया से तारतम्य बनाते हुए
बारिश की यात्रा बताऊंगी
पेड़ों की प्यास बुझ जाएगी
चिड़िया चहचहा उठेगी,
यह जानकर
कि, पास ही नदी है
बारिश के पानी से भरी हुई
प्राकृतिक दुल्हन की तरह !
रश्मि प्रभा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनदी के सौंदर्य को कोई कवि मन ही निहार सकता है! सुंदर सृजन 👌🙏
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