17 जुलाई, 2024

संवेदनशील

 पास आकर कुछ बताना अपने आप में 

एक गहरी खामोशी की रुदाली होती है !

बिल्कुल असामयिक मृत्यु जैसी !!

अगर तुम्हारी संवेदना मरी ना हो

तो खामोश ही रहो न ।

जीवन क्या है !

उसे उसी वक्त 

ऐसे वैसे दिखाने की क्या जरूरत है !

जो दर्द के गहरे समंदर में होता है, 

उसके आगे तो यूं भी एक एक सच 

हाहाकार करता गुजरता है !

कुछ नहीं दे सकते 

तब कम से कम इतना विश्वास ही दे दो

कि किनारे तुम खड़े हो

अगर तुम संवेदनशील हो तो !!


रश्मि प्रभा

9 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लगा आपकी पोस्ट ब्लोग पर देख कर एक लम्बे अन्तराल के पश्चात । सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाक़ई दर्द जीवन का सच दिखा देता है, कोई उस दर्द को महसूस करने वाला हो तो दर्द कुछ कम हो जाता है

    जवाब देंहटाएं
  3. दर्द साझा कहाँ हो पाता है पर कोई महसूस रहा है ये संबंल बहुत ढ़ाढस देता है।
    बहुत दिनों बाद आपको सक्रिय देखकर अच्छा लगा दीदी।
    सादर प्रणाम।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. दर्द का मर्मस्पर्शी चित्रण

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत गहरी बात कही-

    पास आकर कुछ बताना
    अपने आप में
    एक गहरी खामोशी की रुदाली होती है !
    बिल्कुल असामयिक मृत्यु जैसी !!
    अगर तुम्हारी संवेदना मरी ना हो
    तो खामोश ही रहो न... निशब्द 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. जो दर्द के गहरे समंदर में होता है,
    उसके आगे तो यूं भी एक एक सच
    हाहाकार करता गुजरता है !
    सही कहा आपने...अगर तुम्हारी संवेदना मरी ना हो
    तो खामोश ही रहो न ।
    लाजवाब🙏🙏


    जवाब देंहटाएं
  7. सारगर्भित संवेदना से परिपूर्ण सृजन आदरणीया हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं

जो गरजते हैं वे बरसते नहीं

 कितनी आसानी से हम कहते हैं  कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल  अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर  आखिर कहां!...